একনলদেহী প্ৰাণী: বিভিন্ন সংশোধনসমূহৰ মাজৰ পাৰ্থক্য

নতুন পৃষ্ঠা: {{short description|Animal phylum}} {{Taxobox | name = একনলদেহী প্ৰাণী | image= Comb_jellies-mba.jpg | image_caption = কম্ব...
 
31 নং শাৰী:
Complicating the issue is the 1997 work of [[Lynn Margulis]] (revising an earlier model by [[Thomas Cavalier-Smith]]) that placed the Cnidaria and Ctenophora alone in the branch [[Radiata]] within [[Eumetazoa]].<ref>Margulis, Lynn and Karlene V. Schwartz, 1997, ''Five Kingdoms: An Illustrated Guide to the Phyla of Life on Earth'', W.H. Freeman & Company, {{ISBN|0-613-92338-3}}</ref> (The latter refers to all the animals except the [[Porifera|sponges]], [[Trichoplax]], and the still poorly understood [[Mesozoa]]). Neither grouping is accepted universally,<ref>{{Cite web|url=https://www.ncbi.nlm.nih.gov/Taxonomy/Browser/wwwtax.cgi?mode=Tree&id=6072&lvl=3&p=mapview&p=has_linkout&p=blast_url&p=genome_blast&lin=f&keep=1&srchmode=1&unlock|title=Taxonomy browser (Eumetazoa)|website=www.ncbi.nlm.nih.gov}}</ref> however, both are commonly encountered in taxonomic literature.<ref name="Dunn2015"/><ref name="Philippe2009"/> -->
 
== পলিপ আৰু মেডুচা ==
চিলেনটেৰেটাৰ অধিকাংশ সদস্য পলিপ অথবা মেডুচা ৰূপত পোৱা যায়।
=== পলিপ ৰূপ ===
[[চিত্ৰ:Anemone.bristol.750pix.jpg|right|thumb|300px| ছী এনামন (বাঁও) আৰু প্ৰৱাল (সোঁ)]]
'''পলিপ ৰূপ''' হাইড্ৰ'জৱা আৰু এণ্ঠ'জৱা বৰ্গত পোৱা যায়। पुष्पजीवों में उनके विकास की पराकाष्ठा दिखाई पड़ती है। সৰল ৰূপৰ পলিপ গিলাছ অথবা বেলনাকাৰৰ হয়। ইয়াৰ মুখ ওপৰৰ ফালে আৰু বিপৰীত দিশ পৃথিৱীৰ ফালে থাকে। উপনিৱেশ পাতি বাস কৰা জাতিবোৰৰ মুখৰ বিপৰীত দিশত উপনিৱেশৰ প্ৰাণীবোৰ লগ লাগি থাকে। এনে জাতিবোৰৰ বিভিন্ন পলিপৰ ভিতৰৰ সুৰংগবোৰ এটা আনটোৰ সৈতে শাখাৰ দ্বাৰা সংযুক্ত হৈ থাকে। <!-- में विभिन्न पालिपों की आंतरगुहाएँ एक दूसरे से शाखाओं की गुहाओं द्वारा संबंधित रहती हैं। ऐसी जातियों में अधिकांशत: सभी पालिप एक जैसे नहीं होते। उदाहरण के लिए कुछ मुखसहित होते हैं और भोजन ग्रहण करते हैं तो कुछ मुखरहित होते हैं। और भोजन नहीं ग्रहण कर सकते। ये केवल जननक्रिया में सहायक होते हैं (नीचे द्र. 'बहुरूपता')। जलीयकों के पालिपों की आंतरगुहा सरल आकार की थैली जैसी होती है, किंतु पुष्पजीवों में कई खड़े परदे दीवार की भीतरी पर्त से निकलते हैं जो आंतरगुहा को अपूर्ण रूप से कई भागों में बांट देते हैं। इनकी संख्या तथा व्यवस्था प्रत्येक जाति में निश्चित रहती है। समुद्रपुष्प तथा कई अन्य मूँगे की चट्टानों का निर्माण करनेवाले आंतरगुहियों में इन परदों तथा स्पर्शिकाओं की संख्या में विशेष संबंध होता है।
 
समुद्रपुष्प (सी ऐनिमोन) समुद्र की पेंदी पर चिपका रहता है। देखने में यह फूल सा लगता है, परंतु है यह प्राणी और अपनी स्पर्शिकाओं द्वारा छोटे जीवों को पकड़कर पचा डालता है।
 
समुद्रपुष्प (सी ऐनिमोन) का नाम इसलिए पड़ा है कि वह कुछ कुछ फूल सा दिखाई पड़ता है। इसकी भी संरचना अन्य पालिपों की तरह होती है। खोखले बेलनाकार स्तंभ के ऊपर गोल टिकिया सी रहती है, जिसके बीच में मुँहवाला छेद होता है और स्पर्शिकाओं की एक या अधिक तह होती है। स्पर्शिकाएँ फूल की पँखुड़ियों सी जान पड़ती हैं। स्तंभ का निचला सिरा चिपटे पाँव की तरह होता है। इसी के सहारे समुद्रपुष्प विविध वस्तुओं में चिपकता है। परंतु वह स्थायी रूप से एक ही जगह नहीं चिपका रहता। समुद्रपुष्प चल सकता है, परंतु बहुत धीरे-धीरे। बहुधा कई दिनों तक एक ही स्थान में चिपका रह जाता है। समुद्र के तट के पास, छिछले पानी में, समुद्रपुष्प बहुत पाए जाते हैं। ये प्राय: सभी समुद्रों में पाए जाते हैं परंतु उष्ण देशीय समुद्रों के समुद्रपुष्प बड़े होते हैं। ऐसे देशों में मूँगे की डूबी शैल मालाओं पर गज भर की टिकियावाले समुद्रपुष्प पाए जाते हें। ये विविध रंगों के होते हैं और बहुधा इनपर सुंदर धारियाँ और ज्यामितीय चित्रकारी रहती है। ये मांसाहारी होते हैं और अपनी स्पर्शिकाओं से छोटे जीवों को पकड़कर खाते हैं।
 
=== मेडूसा ===
[[चित्र:Hirol-sea-1.jpg|right|thumb|300px|मेडूसा]]
उन आंतर गुहियों को जिन्हें लोग गिजगिजिया (अंग्रेजी में जेली फ़िश) कहते हैं, वैज्ञानिक भाषा में मेडूसा कहते हैं। पाश्चात्य परंपरा के अनुसार मेडूसा नाम की एक राक्षसी थी जिसे केश नहीं थे; केश के बदले में सर्प थे। इसी राक्षसी के नाम पर मेडूसा पड़ा है। मेडूसा का शरीर छतरी के समान होता है और भीतर से, उस बिंदु पर जहाँ छतरी की डंडी लगनी चाहिए, मुख होता है; छतरी की कोर से स्पर्शिकाएँ निकली रहती हैं। छतरी के आकार का होने के कारण इन्हें हिंदी में छत्रिक कहा जाता है। इनका शरीर अत्यंत नरम होने के कारण इन्हें साधारण भाषा में गिजगिजिया कहते हैं।
 
गिजगिजिया बड़ी ही सुंदर होती हैं। इनका मनमोहक रूप देखकर मनुष्य आश्चर्यचकित रह जाता है। इनके शरीर की संरचना तंतुमय होती है, न बाहर हड्डी होती है और न भीतर। इनके भीतर बहुत सा जल रहता है। इसीलिए पानी के बाहर निकाले जाने पर वे चिचुक जाती हैं और उनकी सुंदरता जाती रहती है।
 
समुद्रतट पर खड़े होने से ये जंतु पानी में तैरते हुए कभी न कभी दिखाई पड़ ही जाते हैं। उनकी स्पर्शिकाएँ नीचे झूलती हैं और ऊपर छतरी की तरह उनका शरीर फूला रहता है। जान पड़ता है, ये लाचार हैं और पानी जिधर चाहे उधर उन्हें बहा ले जाएगा, परंतु बात ऐसी नहीं होती। गिजगिजिया इच्छित दिशा में जा सकती है; हाँ, वह तेज नहीं तैर सकती। तैरने के लिए यह अपने छतरी जैसे अंगों को बार बार फुलाती पिचकाती है।
 
गिजगिजिया की कई जातियाँ होती हैं। कुछ में छतरी तीन फुट व्यास की होती है, परंतु अन्य जातियों में छतरियाँ छोटी होती हैं। गिजगिजिया विविध सुंदर रंगों की होती हैं, परंतु तैरनेवालों को उनसे बचा ही रहना चहिए, क्योंकि उनकी बाहुओं में अनेक नलिकाएँ होती हैं, जो शत्रु के शरीर में एँक की तरह विष पहुँचाती हैं। बड़ी गिजगिजियों की स्पर्शिकाएँ कई गज लंबी होती हैं। एक की चपेट में आ जाने से मनुष्य को घंटों पीड़ा होती है। कभी कभी मृत्यु भी हो जाती है।
-->
== তথ্য সংগ্ৰহ ==
{{reflist}}